क्या श्री राम मंदिर के बाद अब काशी विश्वनाथ में महादेव को न्याय मिलने का समय अब नज़दीक आ गया है? कोर्ट ने दी ASI को मंजूरी

 काशी, यानी बाबा विश्वनाथ, देवों के देव महादेव की पवित्र नगरी। जहां कभी हर तरफ हिंदू मंदिर हुआ करते थे। 

उन्हीं मंदिरों में सबसे प्रमुख था काशी विश्वनाथ मंदिर जिसे विश्वेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता था। इस मंदिर में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग हुआ करता था आज वहां तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद दिखाई देती है। ये ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक था, जो आज भी मस्जिद के नीचे दबा हुआ है। इतिहास गवाह है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों और लुटेरों ने पूरे भारत में हिंदुओं के 40 हजार से ज्यादा मंदिर ना सिर्फ तोड़े बल्कि उन्हें लूटा और कई हजार मंदिरों के ऊपर उन्होंने जबरन मस्जिदों का निर्माण किया। उन्हीं में से एक है काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Mandir) जिसे मुस्लिम  आक्रमणकारियों ने कई बार तोड़ा, बिल्कुल सोमनाथ मंदिर की तरह। लेकिन सबसे आखिर में औरंगजेब ने जब इसे 1669 में तुड़वाया तो मस्जिद भी बनवा दी। मस्जिद तो बनवा दी लेकिन लेकिन शायद मस्जिद बनवाने की जल्दबाजी में पूरा मन्दिर नहीं तोड़ा गया, इसलिए मस्जिद के दक्षिणी हिसे की दीवार आज भी साफ दिखाई देती है, जो मंदिर की दीवार है।  आक्रमणकारियों ने मन्दिर के शिखर और कुछ दीवारों को आधा अधूरा तोड़कर मस्जिद नुमा गोल गुम्बद बना दिया। देश आज़ाद होने के कई साल बाद आज तक भी असली स्थान पर मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं हो पाया। आज जो मन्दिर हम काशी में देखते हैं वो असली मंदिर यानी मस्जिद से कुछ दूरी पर है, जिसे उसी ज्ञानवापी परिसर में इंदौर की मराठा महारानी अहिल्या बाई होलकर 

ने बनवाया था, लेकिन ज्योतिर्लिंग आज भी तथाकथित मस्जिद के नीचे दबा हुआ है,जिसकी लंबाई 100 फुट बताई जाती है। 

सौभाग्य से अब एक उम्मीद जगी है जिससे लगता है कि अब काशी को न्याय ज़रूर मिलेगा। दरअस्ल काशीविश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद का केस 350 सालों से भी ज़्यादा पुराना है, लेकिन अदालत में यह केस सन 1936 में पहुंचा था। वर्तमान में जो केस अदालत में चल रहा है वह 1991 से चल रहा है मगर  अब तक इस विवाद का कोई हल नहीं निकल पाया। इसी के मद्देनजर वाराणसी सिविल कोर्ट ने ASI यानी भारतीय  पुरातत्व विभाग (Archeological Survey of India) को ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण करने का हुक्म सुना दिया है। इस केस में ये निर्देश सबसे अहम पड़ाव है, और इससे देश के करोड़ों हिंदुओं में खुशी की लहर है। ASI सर्वेक्षण मे खुदाई से जो तथ्य सामने आएंगे वही तत्थ ये तय करेंगे कि आगे इस विवाद की रूपरेखा क्या होगी।

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर कई हज़ार वर्ष पहले बनाया गया था, लेकिन 2050 साल पहले विक्रमादित्य द्वारा इस मंदिर का ज्योनोउधार (Reconstruct) करवाया था, तब इस्लाम और ईसाइयत जैसी कोई चीज़ पूरी दुनिया में नहीं थी। इसके इलावा काशी विश्वनाथ मंदिर में जो स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है उसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है, इससे आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि इस मंदिर का इतिहास  कितना पुराना है और यह मंदिर हिंदुओं के लिए कितना अहम है।

मुस्लिम पक्षकार कर रहे हैं कोर्ट के फैसले का विरोध

हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई होते हैं, ज़रूर होते होंगे लेकिन कट्टरवादी संख्या में बढ़ते जा रहे हैं। गंगा-जमनी तहज़ीब, आपसी सौहार्द की बात की जाती है लेकिन एक तरफा भाईचारा कबतक चलेगा, हिंदुओं ने हमेशा शांति बनाए रखी वरना अगर कहीं हिंदुओं मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाया होता तो मुसलमानों ने कब की वहां मस्जिद बना दी होती। राम मंदिर केस में भी मुसलमानों को भाईचारा दिखाने का मौका दिया गया था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और ना भविष्य में कभी होगा। फैसला फिर भी कोर्ट ही करना पड़ता है।

राम मंदिर के बाद अब बारी काशी विश्वनाथ मंदिर को न्याय मिलने की आई है। मुस्लिम पक्षों, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड औऱ अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी ने भाईचारा और सौहार्द दिखाना तो दूर बल्कि इन्होंने तो वाराणसी जिला अदालत के ASI सर्वेक्षण कराने के आदेश का विरोध शुरु कर दिया है। उन्होंने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। अगर मुस्लिम पक्षकार सच में चाहते हैं कि सच सामने आए तो फ़िर ASI सर्वेक्षण से डर कैसा? डर यही है कि सर्वेक्षण के बाद सब सामने आ जायेगा। क्योंकि कहीं न कहीं वे भी जानते हैं कि ये मस्जिद मन्दिर तोड़कर ही बनाई गई है।

केस में 3 पक्षकार 

1. खुद महादेव, मतलब स्वयंभू विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग🚩

2. सुन्नी सेंट्रल वफ़क़ बोर्ड

3. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी


मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाये जाने के अहम सबूत

1. मन्दिर का प्राचीन नक्शा

सन 1585 एक नक्शा मौजूद है जो ये साबित करता है कि कभी यहां मंदिर हुआ करता है कि मंदिर तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई थी। वर्तमान में जो केस अदालत में चल रहा है उसकी शुरुआत 1991 में हुई थी लेकिन सन 1936 में ये विवाद कोर्ट तक पहुंचा था, मगर तब हिंदुओं ने नहीं बल्कि मुस्लिम पक्षकार दीन मोहम्मद ने एक याचिका अदालत में देकर ये मांग की थी कि ज्ञानवापी परिसर की पूरी ज़मीन मुस्लिमों को दी जाए। तब भी कोर्ट ने दीन मोहम्मद की याचिका खारिज कर दी थी लेकिन मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त दे दी। इस मुकदमें में कोई हिन्दू पक्ष तो नहीं था लेकिन अदालत में कई महत्वपूर्ण साक्ष्य सामने रखे गए, जिसमें से एक प्राचीन नक्शा भी था जो एक अंग्रेज अफसर जेम्स प्रिंसेप (James Prinsep) ने सन 1834 में बनाया था।


इसके इलावा जेम्स प्रिंसेप ने एक चित्र भी बनाया था जिसमें उस स्पष्ट देखा जा सकता है कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।

आज अगर कैमरे से फ़ोटो ली जाए तो इस पेंटिंग से मेल खाती है।

2. नंदी की दिशा

जहां भी महादेव विराजमान होते हैं वहां नंदी ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। काशी विश्वनाथ मंदिर केस में भी नंदी का आज भी विराजमान होना एक अहम और स्पष्ट साक्ष्य है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी क्योंकि नंदी का मुंह मस्जिद की तरफ़ है। इसका मतलब ये हुआ कि नंदी हमेशा महादेव को ही निहारते हैं तो फ़िर मस्जिद के सामने नंदी का क्या काम। इससे साबित होता है कि कभी वहां मंदिर था जो आज तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद है।


3. औरंगजेब के दरबारी के लिखे दस्तावेज़

औरंगजेब के दरबारी का वो ऐतिहासिक दस्तावेज जिसमे स्पष्ट  रूप से लिखा गया है क्या सन 1669 में औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का आदेश दिया था। ये दस्तावेज आज भी किसी लाइब्रेरी में रखा गया है। 

दरबारी ने इसमें लिखा है "औरंगजेब को ये सूचना मिली के मुल्तान के कुछ सूबों औऱ बनारस में बेवकूफ ब्राह्मण अपनी रद्दी किताबें पाठशालाओं में पढ़ाते हैं। इन पाठशालाओं में हिन्दू-मुसलमान विद्यार्थी और जिज्ञासु उनके बदमाशी भरे ज्ञान-विज्ञान को पढ़ने की दृष्टि से आते हैं। धर्मसंचालक बादशाह ने ये सुनने के बाद सूबेदतों के नाम ये फरमान जारी किया की वो अपनी इच्छा से काफिरों के मंदिर और पाठशालाएं नष्ट करदें। उन्हें इस बात की भी सख्त हिदायत दी गई है कि वो काफियों के मूर्तिपूजा से सम्बंधित सभी तरह के शास्त्रों का पठन और पाठन से लेकर मूर्ति पूजा भी बंद करा दें। इसके बाद औरंगजेब को ये सूचना दी जाती है कि उनके आदेश के बाद 2 सितम्बर 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है।"

4. मंदिर की दीवार

 जिसे हम आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जानते हैं उस तथाकथित मस्जिद की एक दीवार आज भी वहां मंदिर होने का सबूत दे रही है। क्योंकि औरंगजेब ने आधा अधूरा मंदिर तोड़कर मस्जिद नुमा गोल गुंबद तो बना दिया लेकिन यह दीवार आज भी देखी जा सकती है। इस दीवार को देखने से ही पता चल जाता है यहां कभी मंदिर हुआ करता था। इस दीवार पर पत्थरों को तराश कर नक्काशी की गई है जो सिर्फ हिंदू मंदिरों में ही दिखाई देती है इस्लाम से उसका कोई लेना-देना नहीं।

क्या दुनिया में कोई ऐसी मस्जिद कोई और होगी जिसका आधा हिस्सा अलग और आधा अलग दिखता हो!! 

5. ज्ञानवापी मस्जिद नाम

जैसा कि हम सभी जानते हैं की दुनिया भर में जितनी भी मस्जिदें हैं उन सब के नाम इस्लामिक होते हैं लेकिन ज्ञानवापी शब्द ही ना तो उर्दू है नाही अरबी। एक शब्द का भी इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि इस परिसर को ज्ञानवापी परिसर कहा जाता था इसीलिए औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर जो मस्जिद बनाई उसका नाम ज्ञानवापी मस्जिद रखा ताकि हिंदुओं को ये चीज़ हमेशा तकलीफ देती रहे उनकी भावनाओं को आहत करता रहे।

कब-कब तोड़ा और बनाया गया

इतिहाकारों के अनुसार 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र द्वारा विश्वेश्वर मन्दिर (Vishweshwar Temple) का पुनर्निर्माण करवाया था लेकिन सन 1194 में मोहम्मद गौरी ने इसे लूटने के बाद ध्वस्त कर दिया था। 

कई सालों बाद हिंदुओं ने फिर इसे बनाया। लेकिन लूटेरों की फौज फिर से आ गई। सन 1447 में फिर मुस्लिम आक्रांता औऱ लूटेरे महमूद शाह ने इसे तुड़वा दिया।

कई सालों बाद सन 1585 में राजा टोडरमल और पंडित नारायण भट्ट ने फिर से इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया। 

कुछ सालों बाद एक बार फिर सन 1632 में शाहज़हां ने इस मंदिर को तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी। लेकिन इस बार हिंदुओं ने उनका डटकर मुकाबला किया इसलिए आक्रांता मंदिर को तोड़ने में तो असफल रहे लेकिन फ़िर भी उन्होंने काशी के 60 से ज़्यादा अन्य मन्दिरों को तहस-नहस कर दिया।

मुस्लिम आक्रमणकारियों का कहर और हिंदुओं के प्रति घृणा यहीं नहीं रुकी और एक बार फ़िर औरंगजेब ने सन 1669 में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का फरमान जारी कर दिया। आज भी ये फ़रमान कोलकाता की एक लाइब्रेरी में सुरक्षित रखा गया है। इसके इलावा औरंगजेब के शासनकाल के समय के एक लेखक साकी मुस्तयिद खांन ने अपनी एक किताब "मासीदे आलमगीरी" में विश्वनाथ मंदिर विध्वंस के बारे में लिखा है कि औरंगजेब के आदेश पर हिंदू मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। सितम्बर 1669 मंदिर ध्वस्त कर देने की खबर औरंगजेब को दे दी गई थी। 

यही नहीं औरंगजेब की क्रूरता यहीं नहीं रुकी बल्कि इसके बाद उसने प्रतिदिन 1000 ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश दिया। फ़िर क्या था औरंगजेब की क्रूर सेना ने उत्तर प्रदेश में तलवार की नोक पर कई हज़ार ब्राह्मणों को जबरन मुसलमान बनाया, औरतों के साथ बर्बरता की सारी हदें पार की। जो ब्राह्मण मुसलमान बनने के लिए नहीं माना उसे मौत के घाट उतार दिया गया। आज उत्तर प्रदेश में जितने मुसलमान हैं उन सब के पूर्वज हिन्दू ब्राह्मण ही थे।

18वीं सदी में जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत चल थी, हिंदुओं ने जबर्दस्ती बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्ज़ा कर लिया क्योंकि असल में तो पूरा ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं का ही था, जिससे आजकल भले ही ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता हो। हिन्दुओं के कब्ज़ा करने से काशी में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए, जिनमें काफी खून-खराबा हुआ। इसलिए सन 1810 में बनारस के तत्कालीन "जिला दंडाधिकारी" (Distt. Megistrate) वाटसन (Watson) ने कॉउन्सिल के वाईस प्रेसिडेंट को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने लिखा इन दंगों के रोकने का एक ही समाधान है कि ज्ञानवापी परिसर को हमेशा के लिए हिंदुओं को सौंप दिया जाए, क्योंकि यह परिसर हमेशा से हिंदुओं का था और मुस्लिम आक्रांताओ ने यहां हिन्दू मंदिर तोड़कर मस्जिद स्थापित की थी। लेकिन दुर्भाग्य से ये भी कभी संभव नहीं हो पाया।

साल बीतते गए अब 2021 आ चुका है, लेकिन उम्मीद है कि अब जल्द-जल्द से जल्द महादेव को न्याय ज़रूर मिलेगा। विज्ञान आज यहां तक तरक्की कर चुका है कि बिना खुदाई के भी राडार मैपिंग तकनीक (Radar Mapping Technology) के ज़रिए ज़मीन के नीचे कोई भी संरचना को ढूंढा जा सकता है।

3 comments:

  1. बहुत विस्तृत लेख।अब भी कुछ तथाकथित सिकुलर हिन्दू समझ नही रहे कि 99 प्रतिशत मंदिर तोड़ के या उन्ही को थोड़ा बदल के बनाये हुए चुस्लिम अत्याचार की पूरी सत्यता दिखा रहे।

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    1. लेख पढ़ने के लिए आपका दिल से आभार।

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  2. Now entry of the court in this matter and its order to ASI will definitely give us justice.

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