रहस्य: भारत का एक ऐसा किला जहां आज भी अश्वत्थामा करते हैं शिव की पूजा - Is Ashwathama still alive at Asirgarh Fort?
वैसे तो भारत में कई ऐसी जगहें हैं जो चौंकाने वाले रहस्यों से भरी पड़ी हैं। कुछ तो ऐसी हैं जिनका रहस्य आज तक कोई जान नहीं पाया तो कुछ के रहस्य ऐसे चौंकाने वाले होते हैं की सुनकर विश्वास करना भी मुश्किल हो जाता हैं।
ऐसी ही एक जगह के बारे में हम आज आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं, जो मध्यप्रदेश में स्थित है, आप मन लगाकर लेख को ज़रूर पढें।
जी हां हम बात कर रहे हैं असीरगढ़ किले (Asirgarh Fort) की, जो मप्ध्यप्रदेश के बुराहनपुर (Burhanpur) से लगभग 20 किलोमीटर पे दुर्गम पहाड़ियों पर स्थित है। जिन पहाड़ियों के शिखर पर ये ऐतिहासिक और रहस्यमय किला बना हुआ है उन पहाड़ियों को सतपुड़ा पहाड़ी श्रंखला कहा जाता है। चारों तरफ हरियाली औऱ कुदरत के मनमोहन नज़ारे हर किसी को पसंद आते हैं। मगर यहां पहुंचने के लिए कठिन रास्तों से होकर पैदल गुजरना पड़ता है।
असीरगढ़ किले का अश्वत्थामा से सम्बंध
महाभारत के युद्ध के बाद भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था कि वो हाज़रों सालों जंगलो में भटकता रहेगा परन्तु उसे कभी मृतु नही आएगी। ऐसा माना जाता है कि Asirgarh Fort का निर्माण महाभारत के समय में किया गया था, लेकिन बाद में कई शासकों ने यहां से शासन किया, यहां तक के मुगलों ने भी यहां शासन किया। इस किले में एक शिव मंदिर है जिसे गुप्तेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है। कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी यहां आते हैं और रोज़ सुबह ब्रह्म मुहूर्त में किले में बने शिव मंदिर में पूजा करने आते हैं।
असीरगढ़ किला दुर्गम् पहाड़ियों में बना हुआ है इसलिए यहां रोज़ कोई पूजा करने नहीं आता लेकिन कई खास मौकों पर शिवलिंग पर फूल चढ़े हुए मिलते हैं। लोगों का कहना है कि अश्वत्थामा ही भगवान शिव की आराधना करने इस मंदिर में आते हैं। लोगों का ये भी कहना है कि कई बार यहां अश्वत्थामा को देखा गया है लेकिन जिसने भी देखा उसकी दिमागी हालात खराब हो गई।
क्यों दिया था श्री कृष्ण में अश्वत्थामा को श्राप!
जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो कर्ण के कहने पर अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य को सेनापति बना दिया गया था। जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ता जा रहा था वैसे-वैसे द्रोणाचार्य की शक्ति भी बढ़ती जा रही थी, जिससे पांडवो पर हार के बादल मंडरा रहे थे। अश्वत्थामा और उनके पिता गुरु द्रोणाचार्य की बढ़ती संहारक शक्ति को बढ़ते देख श्री कृष्ण ने कूटनीति अपनाई।
इस कूटनीतिक योजना के तहत श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को ये ख़बर फैलाने के लिए कहा गया कि "अश्वत्थामा मारा गया है" परन्तु युधिष्ठिर असत्य बोलने को तैयार नहीं थे। तब भीम ने अवंतिराज के हाथी का वध कर दिया, जिसका नाम भी "अश्वत्थामा" था, औऱ युद्ध में ये बात फैला दी गई कि अश्वत्थामा मारा गया है।
ये बात जब द्रोणाचार्य को पता चली तो वो दंग रह गए, उन्होंने इस बात को पुष्टि करने के लिए यमराज से सत्य जानना चाहा कि क्या सच मे अश्वत्थामा मारा जा चुका है! इसपर यमराज ने उत्तर दिया, अश्वत्थामा मारा गया है "परंतु हाथी", ठीक उसी समय श्री कृष्ण ने शंखनाद कर डाला जिससे हर तरफ शोर शराबा होने लगा, जिसके चलते द्रोणाचार्य को यमराज के आखिरी शब्द "परन्तु हाथी" सुनाई नहीं दिए, और उन्होंने मान लिया कि मेरा पुत्र मारा गया है।
इसके बाद द्रोणाचार्य ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और गहरे शोक में चले गए। लेकिन द्रोणाचार्य को निहत्था देख द्रोपती के भाई धृष्टद्युम्न ने छल से द्रोणाचार्य का वध कर डाला। महाभारत के युद्ध की एक भयंकर घटना थी।
इस छल का समाचार जब अश्वत्थामा को मिला तो दुख और क्रोध से भर गए और उन्होंने प्रतिज्ञा की के पांडवों के किसी पुत्र को जीवित नहीं रहने दूंगा, पांडवो के सम्पूर्ण वंश का नाश करके ही दम लूंगा। इसके बाद अश्वत्थामा युद्ध में और भी आक्रमक हो जाता है औऱ पांडवों की सेना को भी मार गिराता है। इसी बीच वो पांडवों के पांचों पुत्रों की भी हत्या कर देता है।
जब पांडवों के पांचों पुत्र मारे जाते हैं तो द्रोपदी रो-रो कर विलाप करने लगती है और अपने पुत्रों की हत्या का बदला लेने के लिए कहती है। तब अर्जुन ने अश्वत्थामा के वध की प्रतिज्ञा ली और श्री कृष्ण के साथ अश्वत्थामा की तरफ बढ़ने लगते हैं। अर्जुन के इस प्रण से और अर्जुन को श्री कृष्ण, व भीम के साथ अपने पीछे आता देख अश्वत्थामा भयभीत होकर भागने लगे।
भागते-भागते जब वह महाऋषि वेदव्यास जी की कुटिया के पास पहुंचते हैं तो अश्वत्थामा ने अपना ब्रह्नस्त्र अर्जुन पर चला दिया।
तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से भी अपना ब्रह्नस्त्र चलाने के लिए के लिए कहा ताकि अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को रोका जा सके। मजबूर होकर अर्जुन को भी अपना ब्रह्नस्त्र चलान पड़ा लेकिन महाऋषि वेदव्यास ने दोनो ब्रह्मास्त्रों को आपस में टकराने से रोक लिया और दोनों से अपने-अपने ब्रह्नस्त्र वापस बुलाने के लिए कहा क्योंकि अगर दोनों आपस में टकरा जाते तो धरती पर सब नष्ट हो जाता। महाऋषि वेदव्यास के कहने पर अर्जून ने तो अपना ब्रह्नस्त्र वापस मंगा लिया लेकिन अश्वत्थामा वापस बुलाने वाली विद्या नहीं जानते थे। इसलिए अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्नस्त्र की दिशा बदलकर पांडवों की बहू, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की और कर दी, ताकि पांडवो के वंश का आखिरी चिराग (जो कि उत्तरा के गर्भ में पल रहा था) को खत्म करके पांडवों के सम्पूर्ण कुल का विनाश किया जा सके। लेकिन यही अश्वत्थामा की सबसे बड़ी भूल थी, क्योंकि सत्य पर असत्य की कभी विजय नहीं हो सकती। अश्वत्थामा पहले ही पांडवों के सभी पुत्रों को छल से मारकर भयंकर पाप का भागीदार बन चुका था, और अब अजन्मे बालक परीक्षति को गर्भ में ही खत्म करना चाहता था, लेकिन श्री कृष्ण ने ऐसा होने नहीं दिया, उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से ब्रह्मास्त्र को रोक लिया और उत्तर व परीक्षित को बचा लिया।
लेकिन ये देखकर भगवान श्री कृष्ण बहुत क्रोधित हो गए और तभी उन्होंने अश्वत्थामा को भयंकर श्राप दे डाला। उन्होंने अश्वत्थामा से कहा के "तुम्हे अपने पापों का फल तो भोगना ही पड़ेगा, इसिलए श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा के माथे से दिव्य चिंतामणि निकाल ली औऱ कहा की तुम्हारा बो हाल होगा कि लोग तुम्हारा त्रिस्कार करेंगे, तुम्हारे साये से भी दूर भागेंगे। हाज़रों वर्षों तक तुम मारे-मारे फिरते रहोगे, परन्तु तुम्हें ठिकाना नहीं मिलेगा। तुम अपने पापों की गठरी लिए जंगलों में भटकते फिरोगे, यही नहीं तुम स्वयं अपनी छवि से भी डरने लगोगे, अपने आप से घृणा करने लगोगे। तुम खुद अपना त्रिस्कार करोगे, जिस जीवन से तुम सबसे ज़्यादा प्रेम करते हो, उसी जीवन से तुम घृणा करने लगोगे। तुम मृत्यु के लिए गिड़गिड़ाओगे, तड़पोगे परन्तु मृत्यु तुम्हें नहीं आएगी नहीं, कभी नहीं आएगी।"
खुदाई में मिले कुछ प्राचीन सुबूत
जैसे कि हमने बताया कि ये किला महाभारत काल से ही है, स्थानीय लोगों का मानना है कि इस किले के रहस्य कभी खत्म नहीं होते। इसीलिए भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) यहां समय-समय पर खुदाई करते रहते हैं।
जब ASI ने किले के एक हिस्से में खुदाई की तो उन्हें ज़मीन के नीचे कई खास और प्राचीन चीज़ें मिली और एक अद्भुत महल भी ज़मीन के नीचे मिला।
इस महल में 20 गुप्त कमरे तक मिल चुके हैं और एक स्नान कुंड भी महल में मिला है। पुरातत्व विभाग का मानना है कि ये महल रानी का महल हो सकता है। इसके इलावा खुदाई में एक जेल भी मिल चुकी है।
No comments