प्राचीन भारत को विश्वगुरु क्यों कहा जाता है


        जैसा कि हम सभी ने सुना और पढ़ा है कि प्राचीन काल में भारत को विश्वगुरु कहा जाता था। एक समय ऐसा भी था जब भारत का डंका पूरी दुनिया में बजता था, फ़िर चाहे वो अध्यात्म हो, चिकित्सा हो, व्यापार हो, विज्ञान हो या फिर कला औऱ संस्कृति, इन सभी क्षेत्रों में भारत एक अलग छाप छोड़ता था। लेकिन समय का चक्र ऐसा बदला, भारत पर बाहरी अकर्णताओं और लुटेरों का नियंत्रण हो गया, जिससे भारत की "विश्वगुरु भारत" वाली छवि को भारी नुकसान हुआ। फिर भी वो इसमें पूरी तरह से सफल तो नहीं हो पाए लेकिन इसका नुकसान भारत को ज़रूर उठाना पड़ा। आज हम कुछ ऐसी ही महत्वपुर्ण बातें आपके सामने रखेंगे जिससे आप जानेंगे कि प्राचीन भारत (Ancient India) ना सिर्फ विश्वगुरु था, बल्कि आज भी भारत की अनेक उपलब्धियां दुनिया में जानी जाती हैं जो हमेशा से दुनिया के तमाम लोगों का मार्गदर्शन करती आई हैं औऱ आगे भी करती रहेंगी। वैसे तो प्राचीन भारत ने अनगिनत उपलब्धियां और ज्ञान से पूरी दुनिया को अवगत कराया है मगर इस लेख में हम उनमें से केवल 3 का वर्णन करेंगे, तो आईए भारत इन तीन उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

1.शल्य चिकित्सा अर्थात सर्जरी (Surgery)

   सर्जरी (Surgery) के बारे में तो हम सभी ने सुना है, हिंदी में जिसको "शल्य चिकित्सा" भी कहा जाता है। लेकिन शायद बहुत कम लोग ही जानतेे होंगे कि सर्जरी का जन्म भी भारत मे ही हुआ था। जी हां दोस्तो, महर्षि सुश्रुुत को सर्जरी का जन्मदाता माना जाता है। महर्षि सुश्रुत का जन्म दुनिया के सबसे पुराने शहर बनारस में हुआ था। 

     बहुत से लोग यह कहते हैं की महर्षि सुश्रुत का जन्म आज से लगभग 2600 साल पहले हुआ था क्योंकि अंग्रेजों ने हमारा इतिहास ऐसा ही लिखा है। लेकिन ये सच नहीं है, महर्षि सुश्रुत का वर्णन सुश्रुत संहिता के पहले खंड के एक श्लोक में मिलता है जिसमें उस समय के ग्रहों की दिशा के बारे में लिखा गया है। जब प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर (Planetarium Software) की मदद से इन ग्रहों की दिशा का पता लगाया गया तो यह साबित हो गया कि महर्षि सुश्रुत का जन्म 5000 BCE, मतलब आज से लगभग 7000 साल पहले हुआ था। यही नहीं सुश्रुत का वर्णन महाभारत में भी मिलता है, जरा सोचिए जिस महान व्यक्ति का वर्णन महाभारत में मिलता है उसका जन्म सिर्फ 2600 साल पहले कैसेे हो सकता है। इतना ही नहीं महाभारत में महर्षि सुश्रुत के पूरे वंश का वर्णन भी मिलता है। अंग्रेजों और तथाकथित इतिहासकारोंं ने चाहेे जो भी लिखा हो लेकिन हम भारतीय सनातनीयों को सच्चाई को जानने की अत्यंत आवश्यकता है। महर्षि सुश्रुत ने ना सिर्फ दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी की थी बल्कि दुनिया की सबसे पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा का उपयोग करने वाले वह पहले इंसान थे। जरा दिल से सोचिए कि जिस समय दुनिया के दूसरे देशों में भूखमरी फैली हुई थी और बीमारियों का इलाज करने के लिए ढोंग और जादू टोने का सहारा लिया जा रहा था उस समय भारत में महर्षि सुश्रुत कई प्रकार की स्किन सर्जरी के साथ ही मोतियाबिंद निकालने जैसी जटिल सर्जरी में महारत हासिल कर चुके थे।

        आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि सुश्रुत संहिता मैं आज की आधुनिक मेडिकल साइंस पूरी तरह से फिट बैठती है। इसमें आपको हड्डियों की शल्य चिकित्सा (Orthopaedic Surgery), प्लास्टिक सर्जरी (Plastic Surgery), रीड की हड्डी में विलय (Spinal Fusion), मस्तिष्क शल्य चिकित्सा (Brain Surgery), कूल्हा अस्थि भंग (Hip Fracture), ह्रदय शल्य चिकित्सा (Cardiothoracic Surgery), मानव शरीर रचना विज्ञान (Human Anatomy), दंत प्रत्यारोपण (Dental Implant),  गोखरू शल्य चिकित्सा (Bunion Surgery) आदि का विस्तृत वर्णन मिलेगा। इससे भी ज्यादा सुश्रुत संहिता में 1100 से अधिक बीमारियां, उनके लक्षण और उनके इलाज के बारे में संक्षेप में जानकारी दी गई है, और 700 से ज्यादा जड़ी बूटियों के प्रयोगों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

2. योग (Yoga)

     ये तो हम सभी जानते हैं कि योग (Yoga) की शुरुआत भी भारत में ही हुई थी, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि योग कि शुरुआत कब और कैसे हुई। बहुत से लोग ये समझते हैं कि योग की शुरुआत वेदों (Vedas) से हुई क्योंकि हमारे चारों वेदों (ऋग्वेद Rigveda, यजुर्वेद Yajurveda, सामवेद Samaveda, अथर्ववेद Atharvaveda) में योग का वर्णन मिलता है, लेकिन ये सच नहीं है बल्कि वेदों के लिखे जाने से बहुत साल पहले ही योग की शुरूआत हो चुकी थी। हमारे ऋषि मुनियों ने जटिल तप, ध्यान, प्रयोग और अध्यन करने के बाद योग के महत्व को वेदों में समाहित किया है। 

     आज से लगभग 15000 साल पहले हिमालय की पहाड़ियों में कुछ अद्भुत हुआ, एक योगी प्रकट हुए जिनके  अतीत के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटने लगी, जो भी उन्हें देखता था आश्चर्यचकित रह जाता था क्योंकि उनके चेहरे पर एक अलौकिक तेज था और वह वो निष्क्रिय होकर ध्यान मुद्रा में बस बैठे थे। इससे पहले उन लोगों ने ऐसा कुछ नहीं देखा था। लोगों ने उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने किसी से बात नहीं की। दिन बीतते गए लेकिन वो बस वैसे ही बैठे रहते थे। बिना खाना पानी, यहां तक कि शौच तक के लिए नहीं उठे। उन्हें देखकर ये भी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि वह ज़िंदा हैं या मृत, लेकिन सिर्फ एक चीज़ थी जो बीच-बीच में उनके ज़िंदा होने के सुबूत दे रही थी, और वो थे उनकी आंखों से निकलने वाले आंसू, जो किसी दुख नहीं बल्कि उस परम् आनंद का प्रतीक थे जो वह अनुभव कर रहे थे। कई महीने बीत गए और लोगों की भीड़ कम होती चली गई, अंत में सात लोग बच गए जो वहां से नहीं गए। ये सात लोग समझ चुके थे के ये पुरुष कोई साधारण नहीं बल्कि कोई आलोकिक व्यक्तित्व है। क्या आप जानते हैं कि वो पुरूष कौन थे!, वो थे आदि योगी भगवान शिव। इसके बाद ये सात लोग आदि योगी के शिष्य बन गए, आदि योगी ने इन सातों को कई वर्षों तक योग की शिक्षा दी, फिर एक दिन जब सूर्य की दिशा परिवर्तित हुई और सूर्य दक्षिण की ओर मुड़ा तब आदि योगी भी दक्षिण की ओर मुड़े और उन सातों को मनुष्य होने का विज्ञान समझाने लगे, यह वही तिथि थी जो प्रतिवर्ष 21 जून को आती है। इसी दिन योग का आरंभ हुआ। सौभाग्य से इसीलिए इस दिन को संयुक्त राष्ट्र (United States) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day) घोषित किया गया है। योग की शिक्षा पूरी होने के बाद इन सातों को सात दिशाओं में जाने के लिए कहा गया, कोई मध्य एशिया में गया, कोई अफ्रीका तो कोई भारत और  दुनिया के के विभिन्न इलाकों में गया, जिन्होंने योग विद्या का अमुल्य ज्ञान पूरी दुनिया को दिया। यही वह 7 लोग थे जिन्हें आज हम सप्तर्षियों के नाम से जानते हैं।

     भले ही योग (Yoga) को आज केवल एक व्यायाम या शरीर के स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जाता हो परन्तु वास्तव में योग ना केवल शरीर और आत्मा बल्कि परमपिता परमात्मा से भी संबंधित है। योग का असली का अर्थ है "जोड़" अर्थात वह अवस्था जो आत्मा का परमात्मा से जोड़ कराए। योग का अर्थ आसन या व्यायाम मात्र नहीं है। आसन तो योग का एकमात्र भाग है पर असली मायनों में योग का रूप इससे कहीं ज्यादा विस्तृत है।

3. त्रिकोणमिति (Trigonometry)

     त्रिकोणमिति 3 शब्दों से मिलकर बना है त्रि यानी तीन, कोण यानी कोना, और मिति यानी माप। त्रिकोणमिति की खोज आर्यभट्ट ने की थी जो आगे चलकर ट्रिगोनोमेट्री (Trigonometry) बन गई। आर्यभट्ट का जीवनकाल 476 से 550 ईस्वी के बीच था। आर्यभट्ट ने त्रिकोणमिति के बारे में आर्य सिद्धांत नाम के ग्रंथ में विस्तार से बताया है। 

     आर्य सिद्धांत ग्रंथ में आर्यभट्ट ने ज्या (sine θ) कोज्या (cosine θ) उत्कर्म ज्या (versine θ) व्यूत्त ज्या (inverse sine θ) को परिभाषित किया। जरा सोचिए यह भारत के लिए कितने गर्व की बात है कि जब दुनिया के कई देशों में गणित के नाम पर सिर्फ गुणा भाग जोड़ घटा जैसे साधारण गणित तक ही पहुंच पाए थे तब भारत में आर्यभट्ट में त्रिकोणमिति की रचना कर डाली थी। लेकिन अंग्रेजों और तथाकथित इतिहासकारों ने इसका श्रेय कभी भी भारत को नहीं मिलने दिया। यही नहीं आर्यभट्ट ने आकर चलकर 0 से 90 डिग्री के मध्य Sine θ,  Cos θ औऱ Tan θ के मानो की सारणी भी प्रस्तुत की, जिसमें अंतराल केवल 3.75 डिग्री का है। आर्यभट्ट के बाद इसी क्षेत्र को आगे बढ़ाते हुए प्राचीन भारतीय गणितज्ञ वराहमिहिर, भास्कर प्रथम और ब्रह्मगुप्त ने त्रिकोणमिति को आगे बढ़ाया जिसमें वराह मिहिर और ब्रह्मगुप्त ने त्रिकोणमिति के कई सूत्रों की खोज की तथा भास्कर प्रथम ने भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र दिया था जिसकी सहायता से किसी न्यूनकोण के Sine का सन्निकट मान बिना सारणी के निकाला जा सकता है। आज त्रिकोणमिति को भले ही ग्रीक भाषा (Greek Language) से दिए गए शब्दों से ट्रिग्नोमेट्री (Trigonometry) का नाम दे दिया गया हो लेकिन इसकी खोज प्राचीन भारत में भारतीयों द्वारा ही की गई थी।


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